पंजाब केसरी समूह के अख़बार नवोदय टाइम्स में कोचिंग उद्योग पर मेरा साक्षात्कार आज प्रकाशित हुआ है। जगह की कमी के कारण कुछ अंश संपादित किए गए हैं। पाठको की रुचि के लिए मूल साक्षात्कार भी साथ में दे रहा हूँ।
देश के प्रमुख कोचिंग संस्थान करियर प्लस के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक एवं डायलॉग इंडिया पत्रिका के संपादक अनुज अग्रवाल से नवोदय टाइम्स के बरिष्ठ संवाददाता अनिल सागर की कोचिंग उद्योग की दशा -दिशा पर गहन बातचीत –
सरकार द्वारा कोचिंग संस्थानो पर नियंत्रण न होना आश्चर्यजनक – अनुज अग्रवाल
प्रश्न : दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग संस्थान में हालिया हुए अग्निकांड के बारे में आप क्या कहेंगे?
उत्तर: देश में कोचिंग के सबसे बड़े हब दिल्ली के मुखर्जी नगर में एक कोचिंग संस्थान में शार्ट सर्किट से लगी आग से बड़ा हादसा हो गया। दर्जनों छात्र घायल हो गए और अनेक ग़ायब हैं जिनके बारे में पुलिस कुछ नहीं बता रही। कल रात भर हज़ारो छात्रों ने हंगामा और प्रदर्शन किया जो अभी भी जारी है। कुछ कोचिंग संस्थानों की आपसी प्रतिस्पर्धा का नतीजा भी हो सकती है यह आग। बाक़ी सच तो जाँच में ही सामने आएगा और हो सकता है न भी आए।यह सच है कि इन कोचिंगं संस्थानों का इंफ़्रास्ट्रक्चर व सेफ़्टी नॉर्म्स क़ानून के मापदंडों के अनुरूप नहीं होता। अधिक लाभ के लालच में संस्थान एक बड़े हाल में पाँच पाँच सौ तक बच्चे ठूँस देते हैं। मगर कोई भी छात्र कुछ नहीं बोलता न ही उसके अभिभावक , जबकि सब प्रतिष्ठित परिवारों से होते हैं। चुप्पी इसलिए भी रहती है क्योंकि प्रश्न सुरक्षित भविष्य का होता है जो डिग्री से नहीं कोचिंग के ज्ञान से हो पाता है। अब यह दूसरी बात है कि बिना नियम क़ायदे से चलने वाले इन संस्थानो से निकलने वाले छात्र आगे चलकर आईएएस/ पीसीएस अफ़सर आदि बन देश के क़ानून बनाते हैं और देश को क़ानून से चलाने की बात भी करते हैं। मगर सच्चाई यह भी है कि प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होने के बाद अधिकांश टॉपर अपना रिज़ल्ट इन संस्थानों को बेचकर करोड़ों कमाते हैं फिर शादी में भी मोटा दहेज लेते हैं और अक्सर नेताओ, नौकरशाह व अरबपतियो के परिवारों में शादी करते हैं और जब तक ट्रेनिंग के बाद नौकरी शुरू करते हैं तब तक छोटे मोटे कारपोरेट ख़ुद ही बन जाते हैं। न जाने कितने नौकरशाह और यूपीएससी के मेंबर व अध्यक्ष रिटायर होने के बाद इन संस्थानो में नौकरी करते दिखते हैं।
इस खेल पर कोई रोक नहीं, सब मौन हैं सरकार भी यूपीएससी भी और न्यायालय भी।मेरा देश तो ऐसे ही चला है और ऐसे ही चलेगा, काश कोई बदल पाता यह सब।
प्रश्न : देशभर में कोचिंग उद्योग तेजी से फल-फूल रहा है इसकी क्या वजह मानते हैं?
उत्तर: इसके दो बड़े कारण हैं। एक तो देश की बढ़ती हुई आबादी और इसमें युवाओं का बढ़ता हिस्सा। देश की कुल आबादी का दो तिहाई हिस्सा तीस वर्ष से कम आयु का है। इन युवाओं के ढेरों सपने, इच्छा और महत्वाकांक्षाएँ हैं। देश का भविष्य है ये युवा। किंतु तुलनात्मक रूप से देश में अच्छी और सुरक्षित सरकारी व निजी क्षेत्र की नौकरियां व व्यावसायिक कोर्सेस सीमित हैं। ऐसे में इनमें होड़ होनी स्वाभाविक है। इन विद्यार्थियों व इनके अभिभावकों में असुरक्षा की भावना आ जाती है और वे हर कीमत पर इन प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता चाहिए होती है। इसका फायदा कोचिंग संस्थान उठाते हैं। वे योग्य अध्यापकों जो प्रतियोगिता विशेष के विशेषज्ञ होते हैं को अपने साथ जोड़कर “गारंटेड सफलता” का दावा और प्रचार कर बड़ी मात्रा में विद्यार्थियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं व बड़ी मात्रा में धन कमाते हैं। कुछ अच्छे कोचिंग संस्थानों की सफलता और अच्छे परिणाम अन्यों को भी इस व्यवसाय में आने को प्रेरित करते हैं। इसी लालच की होड़ और दौड़ में देश में कोचिंग संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है। पिछले तीन चार सालों में छ: सौ से भी अधिक कारपोरेट सेक्टर की खिलाड़ी इस व्यापार में उतरे हैं और उन्होंने भारी मात्रा में इस क्षेत्र में निवेश किया है।
प्रश्न : देखा जाए कि कोचिंग उद्योग से जुड़े लोग रातों-रात अमीर बन जाते हैं कई बड़ी-बड़ी कंपनियां इसमें कूद रही है।क्या यह अब धोखे देकर पैसा बनाने का उद्योग बनकर रह गया और क्वालिटी कोचिंग आज भी बहुत दूर दिखती है?
उत्तर: जी जैसा मैंने ऊपर बताया कि इस व्यापार में सैकड़ों नए खिलाड़ी आ गए हैं। सभी का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना ही है। किंतु कोचिंग इंडस्ट्री उतनी आसान नहीं, जितना दिखती है। हर दिन गुणवत्तापूर्ण कंटेंट और क्लासेज़ देनी होती हैं, रोज़ असाइनमेंट और टेस्ट के दौर से विद्यार्थियों को गुज़ारना होता है। एक तरह से पूरी कोचिंग अवधि में पूर्णत प्रतिस्पर्धी वातावरण बनाए रखना होता है ताकि विद्यार्थी लगातार “एक्समिनेशन मॉड” में रहे और प्रतियोगिता परीक्षा के लिए सहज होता जाए। इस स्तर पर तैयारी कराने वाले अध्यापकों की संख्या सीमित होती है। ऐसे में ज़्यादा कोचिंग खोलने व बहुत सारे प्लेयर आने से इस बात की कोई गारंटी नहीं वे परीक्षा के लिए आवश्यक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व पाठ्य सामग्री आदि उपलब्ध करा पाएँगे। मात्र विज्ञापनों व इंफ्रास्ट्रक्चर के सहारे इस क्षेत्र में सफलता नहीं मिल सकती। ऐसे में 90 -95% नए प्लेयर असफल हो जाते हैं।
प्रश्न: देश की राजधानी दिल्ली में चार चार कमरों में कोचिंग चल रही है और एक क्लास में 500 बच्चे बिठाए जा रहे हैं इसे कितने हद तक सही मानते हैं?
उत्तर : यह दुखद है , हो सकता है ग़लत भी हो किंतु कटु सत्य है कि देश की सड़ी गली शिक्षा व्यवस्था को बचाने की ज़िम्मेदारी वास्तव में कोचिंग संस्थानों पर ही है। शिक्षा संस्थानों में 90% में न छात्र पढ़ने आते हैं न अध्यापक पढ़ाने आते हैं। बस वे डिग्री बाँटते और बेचते हैं। देश में कोचिंग संस्थान ही एक मात्र ऐसी जगह है जहां शिक्षक पढ़ाने आते हैं और छात्र पढ़ने आते हैं। हाँ यह सच है कि इन कोचिंग संस्थानों का इंफ्रास्ट्रक्चर व सेफ्टी नॉर्म्स क़ानून के मानदंडों के अनुरूप नहीं होता। अधिक लाभ के लालच में संस्थान एक बड़े हाल में पाँच पाँच सौ तक बच्चे ठूँस देते हैं। मगर कोई भी छात्र कुछ नहीं बोलता न ही उसके अभिभावक , जबकि सब प्रतिष्ठित परिवारों से होते हैं। चुप्पी इसलिए भी रहती है क्योंकि प्रश्न सुरक्षित भविष्य का होता है जो डिग्री से नहीं कोचिंग के ज्ञान से हो पाता है।
प्रश्न: 500 बच्चों के स्कूल में नियत स्थान होता है शौचालय, आवश्यक सुविधाओं, पार्किंग आदि के लिए। लेकिन दिल्ली व अन्य शहरों के कोचिंग इंस्टीट्यूट में देखा गया है कि वहाँ एक ही रास्ते से सैकड़ों बच्चों की आवाजाही होती है , यहां तक कि आग से निपटने तक के कोई इंतजाम नहीं होता है?
उत्तर: बिल्कुल अधिकांश कोचिंग संस्थानों में यही स्थिति है। अफ़सोसजनक बात यह है कि कमाई के लालच में व खर्च बचाने के क्रम में अधिकांश कोचिंग संचालक आवश्यक सुरक्षा मापदंडों व सुविधाओं का इंतजाम नहीं करते। न ही सरकारी एजेंसियां कोई ख़ास ध्यान देती हैं। यह क्षेत्र मूलत: असंगठित क्षेत्र में आता है इसलिए उपेक्षित भी है और कोचिंग संस्थानों को बैंक आदि से लोन भी नहीं मिल पाता। ऐसे में शुरुआती सालों में सीमित संसाधनों में काम चलाना कोचिंग संचालक की मजबूरी हो जाती है। इसके अलावा हर शहर में एक विशेष क्षेत्र व बाज़ार जो उस शहर की यूनिवर्सिटी के आसपास होता है व उसके आसपास के क्षेत्र में विद्यार्थी बाहर से आकर रहते हैं, कोचिंग संस्थानों को चलाने के लिए उपयुक्त होता है। इस क्षेत्र में अक्सर जगह की कमी होती है किंतु बेरोजगार विद्यार्थी निकट में खुले व सस्ते में अच्छी कोचिंग देने वाले संस्थानों को वरीयता देता है। सुविधाएँ व सुरक्षा उनकी प्राथमिकता नही होतीं।
प्रश्न: आपको क्या लगता है कि क्या जिस तरह से कोचिंग इंस्टिट्यूट खुले हुए हैं उनके परिणाम भी उसी तरीके से आते हैं सफलता का प्रतिशत बहुत कम नहीं है?
उत्तर: कोचिंग संस्थान जितनी तेज़ी से खुलते हैं उतनी तेज़ी से बंद भी होते हैं। अक्सर प्रतियोगिता परीक्षा में असफल विद्यार्थी कोचिंग खोल लेते हैं। सीमित संसाधनों में जो बेहतर पढ़ा पाता है वो चल निकलता है बाक़ी बंद हो जाते हैं। इसके अलावा जिन अच्छे अध्यापकों को बाहरी फंडिंग हो जाती है या वे किसी कारपोरेट समूह से जुड़ जाते हैं वे भी चल निकलते हैं। कई अच्छे अध्यापक मिलकर पार्टनरशिप में भी कोचिंग खोल लेते है। किंतु निश्चित सफलता का एक ही पैरामीटर है और वो है प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता । जो कोचिंग सेलेक्शन दिला सकता है बस वही चल पाता है बाक़ी सब देर सवेर बंद हो जाते हैं।
प्रश्न : सरकार के स्तर पर क्या आपको लगता नहीं कि सख्त कानून होने चाहिए ताकि अभिभावकों की गाढ़ी कमाई इस तरह ना लूटी जाए।
उत्तर: सरकारे युवाओं को रोजगार देने में सीमित रूप से ही सफल हो पायी है। ऐसे में कोचिंग भी एक उद्योग के रूप में पनपा दिया गया ताकि कुछ लोग इस उद्योग से भी रोजगार प्राप्त कर सके। यह नकारात्मक उद्योग है किंतु कड़वा सच भी है आज का।वैसे पढ़ना पढ़ाना कैसे ग़लत ठहराया जा सकता है। यह पूर्णता दुकानदार और ग्राहक के आपसी लेनदेन का मामला है। जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व सेवाएं देता है वही चलता है। सरकारी नियंत्रण व नियम क़ायदे तो होने ही चाहिए । यह आश्चर्यजनक है कि सरकार क्यों इस दिशा में प्रभावी कानून बनाने से बचती रही हैं।किंतु विद्यार्थी और अभिभावक के लिए आवश्यक है कि वे किसी भी कोचिंग में प्रवेश लेने से पहले वस्तुस्थिति की संपूर्ण जानकारी लेकर ही फीस जमा करे। कोचिंग में पढ़ने वाले विद्यार्थियों से फीडबैक, ट्रायल क्लास, फी रिफंड आदि की गारंटी भी आवश्यक कदम हैं। इन कदमों से वे किसी भी धोखे व लूट से बच सकते हैं। साथ ही सभी को सरकार पर भी इस दिशा में कानून बनाने के लिए दबाव बनाना चाहिए।
प्रश्न: क्वालिटी कोचिंग के लिए आपके क्या सुझाव है?
उत्तर: अक्सर बड़ी बड़ी डिग्री व अच्छे संस्थानो से शिक्षित अध्यापक कोचिंग के क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते क्योंकि परीक्षा विशेष की कोचिंग का उनको अनुभव नहीं होता। सेवा क्षेत्र और व्यवसाय क्षेत्र की विविध परीक्षाओं का पाठ्यक्रम ऐकडेमिक पाठ्यक्रम से बहुत अलग होता है। जो व्यक्ति इन परीक्षाओं की तैयारी करता रहा हो, परीक्षा देता रहा हो व सफल रहा हो वह बेहतर तरीके से पढ़ा पाता है और कोचिंग संचालक ऐसे ही अध्यापकों को वरीयता देते हैं। प्रवेश के समय विद्यार्थी को देखना चाहिए की जिस प्रवेश अथवा जॉब की परीक्षा के लिए वह तैयारी कर रहा है उससे संबंधित कोचिंग संस्थान में कितने अनुभवी विशेषज्ञ जुड़े हैं। चूँकि कोचिंग कोई डिग्री नहीं बाँटते, ऐसे में यह क्षेत्र पूरी तरह डिमांड- सप्लाई के मापदंड पर चलता है। जो कोचिंग परीक्षा अनुरूप कोचिंग देता है वही सफल होता है , जो भटकता है वो बंद हो जाता है। सजग विद्यार्थी वही है जो विज्ञापनों के भ्रम व तिलिस्म का शिकार न हो एक ग्राहक के रूप में कोचिंग में जाए और सच्चाई को परख कर प्रवेश ले तो उसका भविष्य भी सुरक्षित रहेगा और कोचिंग संस्थान की गुणवत्ता भी।
अनुज अग्रवाल
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक , करियर प्लस कोचिंग
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संपादक ,डायलॉग इंडिया
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